दूर हो दर्द-ए-दिल ये और दर्द-ए-जिगर किसी तरह
आज तो हम-नशीं उसे ला मिरे घर किसी तरह
तीर-ए-मिज़ा हो यार का और निशाना दिल मिरा
तीर पे तीर ता-ब-कै कीजे हज़र किसी तरह
नाला हो या कि आह हो शाम हो या पगाह हो
दिल में बुतों के हाए हाए कीजे असर किसी तरह
आई शब-ए-फ़िराक़ है रात है सख़्त ये बहुत
कीजे शुमार-ए-अख़तराँ ता हो सहर किसी तरह
इश्क़ में दिल से हम हुए महव तुम्हारे ऐ बुतो
ख़ाली हैं चश्म-ओ-दिल करो इन में गुज़र किसी तरह
ग़ज़ल
दूर हो दर्द-ए-दिल ये और दर्द-ए-जिगर किसी तरह
बहराम जी