EN اردو
दूर हो दर्द-ए-दिल ये और दर्द-ए-जिगर किसी तरह | शाही शायरी
dur ho dard-e-dil ye aur dard-e-jigar kisi tarah

ग़ज़ल

दूर हो दर्द-ए-दिल ये और दर्द-ए-जिगर किसी तरह

बहराम जी

;

दूर हो दर्द-ए-दिल ये और दर्द-ए-जिगर किसी तरह
आज तो हम-नशीं उसे ला मिरे घर किसी तरह

तीर-ए-मिज़ा हो यार का और निशाना दिल मिरा
तीर पे तीर ता-ब-कै कीजे हज़र किसी तरह

नाला हो या कि आह हो शाम हो या पगाह हो
दिल में बुतों के हाए हाए कीजे असर किसी तरह

आई शब-ए-फ़िराक़ है रात है सख़्त ये बहुत
कीजे शुमार-ए-अख़तराँ ता हो सहर किसी तरह

इश्क़ में दिल से हम हुए महव तुम्हारे ऐ बुतो
ख़ाली हैं चश्म-ओ-दिल करो इन में गुज़र किसी तरह