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दूर बैठे हैं क्यूँ पास तो आइए | शाही शायरी
dur baiThe hain kyun pas to aaiye

ग़ज़ल

दूर बैठे हैं क्यूँ पास तो आइए

मोहम्मद अज़हर शम्स

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दूर बैठे हैं क्यूँ पास तो आइए
वक़्त रुकता नहीं यूँ न शरमाइए

ज़ीना-ए-इश्क़ भी ज़ीनत-ए-बैत भी
दिल में रखिए क़दम दिल में बस जाइए

चार सू है घटा है क़यामत बपा
ज़ुल्फ़ बहर-ए-करम यूँ न बिखराइए

चाँद तो है हसीं आप सा तो नहीं
बात सच है यही मान भी जाइए

मैं हूँ बिस्मिल-नज़र आप को है ख़बर
मर न जाऊँ कहीं अब न तड़पाइए

आप ही का तो नक़्श-ए-क़दम चाँद है
चाँदनी बन के आँगन में छा जाइए