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दूध जैसा झाग लहरें रेत और ये सीपियाँ | शाही शायरी
dudh jaisa jhag lahren ret aur ye sipiyan

ग़ज़ल

दूध जैसा झाग लहरें रेत और ये सीपियाँ

हसन अकबर कमाल

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दूध जैसा झाग लहरें रेत और ये सीपियाँ
जिन को चुनती फिर रही हैं मोतियों सी लड़कियाँ

बाग़ में बच्चों के गिर्द-ओ-पेश यूँ उड़ती फिरें
जैसे क़ातिल अपना अपना ढूँढती हों तितलियाँ

वो मुझे ख़ुशियाँ न दे और मेरी आँखें नम न हों
है ये पैमाँ ज़िंदगी के और मेरे दरमियाँ

बाम-ओ-दर उन के हवा किस प्यार से छूती रही
चाँदनी की गोद में जब सो रही थीं बस्तियाँ

कल यही बच्चे समुंदर को मुक़ाबिल पाएँगे
आज तैराते हैं जो काग़ज़ की नन्ही कश्तियाँ

घूमना पहरों घने महके हुए बन में 'कमाल'
वापसी में देखना अपने ही क़दमों के निशाँ