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डूबते लोगों की ख़ातिर आस का तिनका हूँ मैं | शाही शायरी
Dubte logon ki KHatir aas ka tinka hun main

ग़ज़ल

डूबते लोगों की ख़ातिर आस का तिनका हूँ मैं

इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’

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डूबते लोगों की ख़ातिर आस का तिनका हूँ मैं
शाइ'री गर काम है तो काम का बंदा हूँ मैं

एक दिन सोचा रखूँ ख़ुद को ज़रा तरतीब से
और फिर सोचा कि ये क्या क्या सोचता रहता हूँ मैं

रफ़्ता रफ़्ता पहनूँगा सारे मखोटे सब कवच
वक़्त दो ऐ शहर वालो दश्त से आया हूँ मैं