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डूबता हूँ जो हटाता हूँ नज़र पानी से | शाही शायरी
Dubta hun jo haTata hun nazar pani se

ग़ज़ल

डूबता हूँ जो हटाता हूँ नज़र पानी से

साबिर ज़फ़र

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डूबता हूँ जो हटाता हूँ नज़र पानी से
और तकता हूँ तो चकराता है सर पानी से

चाँद भी अब निकल आया उफ़ुक़-ए-आब के पार
मेरे ग़र्क़ाब बदन तू भी उभर पानी से

नामा-बर कोई नहीं है तो किसी लहर के हाथ
भेज साहिल की तरफ़ अपनी ख़बर पानी से

ये भी क्या कम है कि टीले तो हुए कुछ हमवार
बनती जाती है नई राहगुज़र पानी से

नहीं मालूम कि बह जाऊँ मैं कब ख़स की तरह
यूँ तो महफ़ूज़ अभी तक हूँ 'ज़फ़र' पानी से