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डूबना है उस से ये इक़रार कर लेना मिरा | शाही शायरी
Dubna hai us se ye iqrar kar lena mera

ग़ज़ल

डूबना है उस से ये इक़रार कर लेना मिरा

मोहम्मद अहमद रम्ज़

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डूबना है उस से ये इक़रार कर लेना मिरा
फिर ब-आसानी समुंदर पार कर लेना मिरा

कौन पूछे मुझ से मेरी गोशा-गीरी का सबब
कौन समझे दर कभी दीवार कर लेना मिरा

एक ख़ुश्बू बन के गुज़रे सर से सारे गर्म ओ सर्द
उस का चेहरा थामना और प्यार कर लेना मिरा

बन गया लोगों की शान-ए-कज-कुलाही का सवाल
अपने सर को लाएक़-ए-दस्तार कर लेना मिरा

'रम्ज़' उस को दे गया इक तर्ज़-ए-फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ
बंद आँखों को लब-ए-इज़हार कर लेना मिरा