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डूबा हुआ उठूँ दम-ए-महशर शराब में | शाही शायरी
Duba hua uThun dam-e-mahshar sharab mein

ग़ज़ल

डूबा हुआ उठूँ दम-ए-महशर शराब में

मिर्ज़ा मायल देहलवी

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डूबा हुआ उठूँ दम-ए-महशर शराब में
दे दें कफ़न जो यार डुबो कर शराब में

माने न माने कोई प इतना कहेंगे हम
है ज़ौक़-ए-बे-ख़ुदी तो मुक़र्रर शराब में

मानें जो मेरी बात मुरीदान-ए-बे-रिया
दें शैख़ को कफ़न तो डुबो कर शराब में

किस के ख़िराम-ए-नाज़ से मिलती है मौज-ए-जाम
बरपा है एक फ़ित्ना-ए-महशर शराब में

वो रिन्द-ए-बादा-कश हूँ कि 'माइल' पस-ए-फ़ना
जल्वे ने तिरे क़हर उठाया नक़ाब में