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दुश्मनी लर्ज़ां है यारो दोस्ती के सामने | शाही शायरी
dushmani larzan hai yaro dosti ke samne

ग़ज़ल

दुश्मनी लर्ज़ां है यारो दोस्ती के सामने

शफ़ीउल्लाह राज़

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दुश्मनी लर्ज़ां है यारो दोस्ती के सामने
तीरगी थर्रा रही है रौशनी के सामने

क़ाफ़िले वालों से ये मंज़र न देखा जाएगा
राहबर हैं सर ब-सज्दा गुमरही के सामने

रूह तो तारीकियों में ग़र्क़ हो कर रह गई
जिस्म अलबत्ता है अपना रौशनी के सामने

इक नज़र बस आप मेरे सामने आ जाइए
उम्र भर बैठा रहूँगा आप ही के सामने

तेरे दामन में महकते हैं हज़ारों गुल्सिताँ
और तेरा हाथ फैला है कली के सामने

ज़िंदगी में बारहा ऐसे भी लम्हे आए हैं
गुफ़्तुगू शर्मा गई है ख़ामुशी के सामने

जो अँधेरे में मज़ालिम तोड़ते रहते हैं 'राज़'
आ नहीं सकते वो ज़ालिम रौशनी के सामने