दुश्मन हैं वो भी जान के जो हैं हमारे लोग
और आप के हैं दोस्त ज़माने में सारे लोग
आता नहीं है साहिल-ए-बहर-ए-फ़ना नज़र
क्या जानें पार होते हैं किस के सहारे लोग
क्या जानें उन की चाल में एजाज़ है कि सेहर
वो भी उन्हीं से मिल गए जो थे हमारे लोग
हो किस ज़बाँ से महफ़िल-ए-दिलदार की सना
वो आफ़्ताब-ए-हुस्न तो अंजुम हैं सारे लोग
तक़्सीर-वार-ए-इश्क़ जो होता है कोई ज़ब्ह
करते हैं अफ़्व जुर्म के उन से इशारे लोग
देखा बग़ौर ऐब से ख़ाली नहीं कोई
बज़्म-ए-जहाँ में सब हैं ख़ुदा के सँवारे लोग
छोड़ा न साथ हश्र तक आमाल-ए-नेक 'हक़ीर'
सब हो गए लुटा के लहद में किनारे लोग
ग़ज़ल
दुश्मन हैं वो भी जान के जो हैं हमारे लोग
हक़ीर