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दुनिया वालों ने चाहत का मुझ को सिला अनमोल दिया | शाही शायरी
duniya walon ne chahat ka mujhko sila anmol diya

ग़ज़ल

दुनिया वालों ने चाहत का मुझ को सिला अनमोल दिया

शकेब जलाली

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दुनिया वालों ने चाहत का मुझ को सिला अनमोल दिया
पैरों में ज़ंजीरें डालीं हाथों में कश्कोल दिया

इतना गहरा रंग कहाँ था रात के मैले आँचल का
ये किस ने रो रो के गगन में अपना काजल घोल दिया

ये क्या कम है उस ने बख़्शा एक महकता दर्द मुझे
वो भी हैं जिन को रंगों का इक चमकीला ख़ोल दिया

मुझ सा बे-माया अपनों की और तो ख़ातिर क्या करता
जब भी सितम का पैकाँ आया मैं ने सीना खोल दिया

बीते लम्हे ध्यान में आ कर मुझ से सवाली होते हैं
तू ने किस बंजर मिट्टी में मन का अमृत डोल दिया

अश्कों की उजली कलियाँ हों या सपनों के कुंदन फूल
उल्फ़त की मीज़ान में मैं ने जो था सब कुछ तोल दिया