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दुनिया से वफ़ा कर के सिला ढूँढ रहे हैं | शाही शायरी
duniya se wafa kar ke sila DhunDh rahe hain

ग़ज़ल

दुनिया से वफ़ा कर के सिला ढूँढ रहे हैं

सुदर्शन फ़ाख़िर

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दुनिया से वफ़ा कर के सिला ढूँढ रहे हैं
हम लोग भी नादाँ हैं ये क्या ढूँढ रहे हैं

कुछ देर ठहर जाइए ऐ बंदा-ए-इंसाफ़
हम अपने गुनाहों में ख़ता ढूँढ रहे हैं

ये भी तो सज़ा है कि गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ
क्यूँ लोग मोहब्बत की सज़ा ढूँढ रहे हैं

दुनिया की तमन्ना थी कभी हम को भी 'फ़ाकिर'
अब ज़ख़्म-ए-तमन्ना की दवा ढूँढ रहे हैं