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दुनिया से परे जिस्म के इस बाब में आए | शाही शायरी
duniya se pare jism ke is bab mein aae

ग़ज़ल

दुनिया से परे जिस्म के इस बाब में आए

रियाज़ लतीफ़

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दुनिया से परे जिस्म के इस बाब में आए
हम ख़ुद से जुदा हो के तिरे ख़्वाब में आए

कुछ ऐसे भी हमवार की हर सतह को अपनी
मौजों की तरह हम तिरे पायाब में आए

उन को भी अबद के किसी साहिल पे उतारो
वो लम्स जो इस रात के सैलाब में आए

इक नक़्श तो ठहरा था रवानी के बदन पर
जब बन के भँवर हम तिरे गिर्दाब में आए

बिखराओ के शहपर पे हम उतरे पे ज़मीं पर
कुछ फैल के इस नुक़्ता-ए-नायाब में आए

थे ग़ैब के तेशे से तराशे हुए हम तब
अंगड़ाई की सूरत तिरी मेहराब में आए