EN اردو
दुनिया से, जिस से आगे का सोचा नहीं गया | शाही शायरी
duniya se, jis se aage ka socha nahin gaya

ग़ज़ल

दुनिया से, जिस से आगे का सोचा नहीं गया

राजेश रेड्डी

;

दुनिया से, जिस से आगे का सोचा नहीं गया
हम से वहाँ पहुँच के भी ठहरा नहीं गया

आँखों पे ऐसा वक़्त भी गुज़रा है बार-हा
वो देखना पड़ा है जो देखा नहीं गया

पढ़वाना चाहते थे नुजूमी से हम वही
हम से क़दम ज़मीन पे रक्खा नहीं गया

नक़्शे में आज ढूँडने बैठा हूँ वो ज़मीं
जिस को हज़ार टुकड़ों में बाँटा नहीं गया

अब क्या कहें नुजूमी के बारे में छोड़िए
अपना तो ये बरस भी कुछ अच्छा नहीं गया