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दुनिया में वफ़ा-केश बशर ढूँढ रहा हूँ | शाही शायरी
duniya mein wafa-kesh bashar DhunDh raha hun

ग़ज़ल

दुनिया में वफ़ा-केश बशर ढूँढ रहा हूँ

बिर्ज लाल रअना

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दुनिया में वफ़ा-केश बशर ढूँढ रहा हूँ
मैं नख़्ल-ए-सनोबर में समर ढूँढ रहा हूँ

मैं अपनी दुआओं में असर ढूँढ रहा हूँ
तारीक फ़ज़ाओं में क़मर ढूँढ रहा हूँ

मैं और तमाशा-ए-गुल-ओ-रंग पे माइल
खोया हुआ इक ज़ौक़-ए-नज़र ढूँढ रहा हूँ

वो सुब्ह-ए-क़यामत में हुए जाते हैं पिन्हाँ
मैं शाम-ए-मुसीबत की सहर ढूँढ रहा हूँ

ख़ुशबू की तरह ख़ल्वत-ए-गुल से हूँ रमीदा
ज़िंदान-ए-तमन्ना से मफ़र ढूँढ रहा हूँ

तश्बीह के अफ़्सूँ का असर पूछो न 'रा'ना'
शमशीर में उस बुत की नज़र ढूँढ रहा हूँ