दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें
तुझ बिन तो अपनी ज़ीस्त ही दुश्वार है हमें
तू ही नहीं तो जान तिरी जान की क़सम
ये जान किस के वास्ते दरकार है हमें
गिरते हैं दुख से तेरी जुदाई के वर्ना ख़ैर
चँगे-भले हैं कुछ नहीं आज़ार है हमें
मर बच के दिन तो गुज़रे है जूँ-तूँ पर इस तरह
नज़रों में नूर-ए-मेहर शब-ए-तार है हमें
फिर रात की न पूछ हक़ीक़त कि सुब्ह तक
आह-ओ-फ़ुग़ान-ओ-दीदा-ए-ख़ूँबार है हमें
हो कर उदास बाग़ में जावें कभू तो वाँ
नज़रों के बीच हर रग-ए-गुल ख़ार है हमें
दिन का वो हाल रात का वो कुछ बयान है
सैर-ए-चमन सो दिल से कुछ ऐ यार है हमें
तिस पर भी हम से मिलने का इंकार है तुझे
जिस में तिरी रज़ा सू-ए-इक़रार है हमें
शिकवे भरे हैं दिल में व-लेकिन 'मुहिब्ब'-ए-मन
कब तेरे आगे ताक़त-ए-गुफ़्तार है हमें
ग़ज़ल
दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें
वलीउल्लाह मुहिब