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दुनिया में हम जो अपनी हक़ीक़त को पा गए | शाही शायरी
duniya mein hum jo apni haqiqat ko pa gae

ग़ज़ल

दुनिया में हम जो अपनी हक़ीक़त को पा गए

मायल ख़ैराबादी

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दुनिया में हम जो अपनी हक़ीक़त को पा गए
तो ज़िंदगी के राज़ समझ में सब आ गए

ये सोचते हैं सिर्फ़ यही सोचते हैं अब
हम तेरे दर पे लाए गए हैं कि आ गए

कलियों को खुल के हँसने का अंदाज़ आ गया
गुलशन में आ के तुम जो ज़रा मुस्कुरा गए

अपना मक़ाम भी मुतअय्यन न कर सके
वो क्या कहेंगे दहर में क्या आए क्या गए

ज़ेबा था उन को दावा-ए-तामीर-ए-गुलसिताँ
जो बिजलियों में रह के नशेमन बना गए

इक हम हैं राह ढूँड रहे हैं इधर उधर
इक वो हैं ख़ुश-नसीब जो मंज़िल को पा गए

राह-ए-वफ़ा में आए हैं वो मरहले जहाँ
'माइल' बड़े-बड़ों के क़दम डगमगा गए