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दुनिया में है यूँ तो कौन बे-ग़म | शाही शायरी
duniya mein hai yun to kaun be-gham

ग़ज़ल

दुनिया में है यूँ तो कौन बे-ग़म

राशिद मुफ़्ती

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दुनिया में है यूँ तो कौन बे-ग़म
पूछे कोई क्यूँ उदास हैं हम

क्या शहर के बासियों को मा'लूम
करते हैं ग़ज़ाल किस तरह रम

करते रहे उम्र भर वज़ाहत
पर रह गई बात फिर भी मुबहम

शिकवा तो है दूसरों से लेकिन
नाराज़ हैं अपने आप से हम

हर साँस के साथ कर रहे हैं
गुज़री हुई ज़िंदगी का मातम

औरों की नज़र में क्या समाते
ख़ुद आप को भी जचे नहीं हम

'राशिद' वो ग़ज़ल कोई ग़ज़ल है
गाए न जिसे 'फ़रीदा-ख़ानम'