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दुनिया में बक़ा नहीं किसी को | शाही शायरी
duniya mein baqa nahin kisi ko

ग़ज़ल

दुनिया में बक़ा नहीं किसी को

दत्तात्रिया कैफ़ी

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दुनिया में बक़ा नहीं किसी को
मरना इक रोज़ है सभी को

वो कौन है जो है ऐब से पाक
क्या कोई बुरा कहे किसी को

मा'लूम है वा'दे की हक़ीक़त
भुला लेते हैं अपने जी को

ख़ुद नूर-ए-ख़ुदा हो तुम में पैदा
दिल से खो दो अगर ख़ुदी को

सौ ऐबों का एक ऐब है ये
इफ़्लास ख़ुदा न दे किसी को

मुश्किल नहीं कोई काम लेकिन
हिम्मत लाज़िम है आदमी को

सच कह दे कि है क़ुसूर किस का
मुंसिफ़ मैं ने किया तुझी को

माना कि शराब छोड़ी 'कैफ़ी'
ऐसा तो कहो न मय-कशी को