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दुनिया क्या है बर्फ़ की इक अलमारी है | शाही शायरी
duniya kya hai barf ki ek almari hai

ग़ज़ल

दुनिया क्या है बर्फ़ की इक अलमारी है

फ़ारूक़ शफ़क़

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दुनिया क्या है बर्फ़ की इक अलमारी है
एक ठिठुरती नींद सभी पर तारी है

कोहरा ओढ़े ऊँघ रहे हैं ख़स्ता मकाँ
आज की शब बीमार दियों पर भारी है

सब कानों में इक जैसी सरगोशी सी
एक ही जैसा दर्द ज़बाँ पर जारी है

शाम की तक़रीबात में हिस्सा लेना है
कच्चा रस्ता धूल अटी इक लारी है

गोरी चट्टी धूप बुलाए जाड़े की
वो क्या जाने मेरी क्या दुश्वारी है