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दुनिया को इस बार फ़साना कर दूँगा | शाही शायरी
duniya ko is bar fasana kar dunga

ग़ज़ल

दुनिया को इस बार फ़साना कर दूँगा

उबैद सिद्दीक़ी

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दुनिया को इस बार फ़साना कर दूँगा
ख़्वाबों को हर सम्त रवाना कर दूँगा

इन रस्तों से मेरी पुरानी निस्बत है
साथ चलो तो सफ़र सुहाना कर दूँगा

आ जाएगी दुनिया असली हालत पर
नाफ़िज़ हर दस्तूर पुराना कर दूँगा

वो भी कहाँ करता है कोई वादा पूरा
मैं भी उस से कोई बहाना कर दूँगा

शायद तुम को पता नहीं मैं चाहूँ तो
अपने हक़ में पेश ज़माना कर दूँगा