दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया
हुस्न-ख़याल-यार ने दीवाना कर दिया
तू ने कमाल जल्वा-ए-जानाना कर दिया
बुलबुल को फूल शम्अ' को परवाना कर दिया
मशरब नहीं ये मेरा कि पूजूँ बुतों को मैं
शौक़-ए-तलब ने दिल को सनम-ख़ाना कर दिया
उन की निगाह-ए-मस्त के क़ुर्बान जाइए
मेरे जुनूँ को हासिल-ए-मय-ख़ाना कर दिया
ठुकराए या क़ुबूल करे उस की बात है
हम ने तो पेश जान का नज़राना कर दिया
तेरे ख़िराम-ए-नाज़ पे क़ुर्बान ज़िंदगी
नक़्श-ए-क़दम को रौनक़-ए-वीराना कर दिया
मैख़ाना-ए-अलस्त का वो रिंद हूँ 'फ़ना'
जिस पर निगाह डाल दी मस्ताना कर दिया
ग़ज़ल
दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया
फ़ना बुलंदशहरी