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दुनिया है क्या चीज़ बराबर देख रहा हूँ | शाही शायरी
duniya hai kya chiz barabar dekh raha hun

ग़ज़ल

दुनिया है क्या चीज़ बराबर देख रहा हूँ

शनावर इस्हाक़

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दुनिया है क्या चीज़ बराबर देख रहा हूँ
अपनी आँख से आगे बढ़ कर देख रहा हूँ

एक समुंदर आँख से बाहर देख रहा हूँ
एक समुंदर अपने अंदर देख रहा हूँ

किस हैरत से तेरा पैकर देख रहा हूँ
यूँ लगता है तितली के पर देख रहा हूँ

ऐसे देखो ये देखो और वो नहीं देखो
बंद करो ये मैं भी अक्सर देख रहा हूँ