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दुनिया अजीब खेल तमाशा लगे मुझे | शाही शायरी
duniya ajib khel tamasha lage mujhe

ग़ज़ल

दुनिया अजीब खेल तमाशा लगे मुझे

शमशाद सहर

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दुनिया अजीब खेल तमाशा लगे मुझे
हर आदमी हुजूम में तन्हा लगे मुझे

गूँगे मुजाहिदों का ये ठहरा हुआ जुलूस
परछाइयों का एक जज़ीरा लगे मुझे

बाज़ार-ए-संग-ओ-ख़िश्त में सौ नाज़ुकी के साथ
अपनी हयात काँच की गुड़िया लगे मुझे

सूरज-मुखी की तरह बदलती है रुख़ हयात
जब आफ़्ताब-ए-वक़्त उभरता लगे मुझे

इस दर्जा मौज-ए-ख़ूँ है रगों में शरर-फ़िशाँ
उम्र-ए-रवाँ तो आग का दरिया लगे मुझे

पौ फूटते ही दूर निकल जाऊँगा 'सहर'
संसार एक रैन-बसेरा लगे मुझे