EN اردو
दुखाता है मिरा दिल बे अलिफ़ रे | शाही शायरी
dukhata hai mera dil be alif re

ग़ज़ल

दुखाता है मिरा दिल बे अलिफ़ रे

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम

;

दुखाता है मिरा दिल बे अलिफ़ रे
हुआ हूँ रंज से मैं ज़े अलिफ़ रे

उड़ाईं धज्जियाँ भी तू ने लेकिन
छुटा दामन न तुझ से ख़े अलिफ़ रे

गरेबाँ-गीर है ये जो वहशत
न रक्खा नाम को भी ते अलिफ़ रे

ख़ुशी से काट ले क़ातिल मिरा सर
हुआ है अब तो मुझ को बे अलिफ़ रे

निगाहों को कहूँ क्यूँ-कर न बर्छी
कि सीने से हुई हैं पे अलिफ़ रे

इलाही ज़े अलिफ़ रे तो हुआ हूँ
प चश्म-ए-ग़ैर में हूँ ख़े अलिफ़ रे

लिया है दिल तुम्हारा उस ने 'अंजुम'
करे आँखें वो क्यूँकर चे अलिफ़ रे

तसव्वुर गुल-रुख़ों का 'आसमाँ' क्यूँ
गले का हो गया है हे अलिफ़ रे