दुखाता है मिरा दिल बे अलिफ़ रे 
हुआ हूँ रंज से मैं ज़े अलिफ़ रे 
उड़ाईं धज्जियाँ भी तू ने लेकिन 
छुटा दामन न तुझ से ख़े अलिफ़ रे 
गरेबाँ-गीर है ये जो वहशत 
न रक्खा नाम को भी ते अलिफ़ रे 
ख़ुशी से काट ले क़ातिल मिरा सर 
हुआ है अब तो मुझ को बे अलिफ़ रे 
निगाहों को कहूँ क्यूँ-कर न बर्छी 
कि सीने से हुई हैं पे अलिफ़ रे 
इलाही ज़े अलिफ़ रे तो हुआ हूँ 
प चश्म-ए-ग़ैर में हूँ ख़े अलिफ़ रे 
लिया है दिल तुम्हारा उस ने 'अंजुम' 
करे आँखें वो क्यूँकर चे अलिफ़ रे 
तसव्वुर गुल-रुख़ों का 'आसमाँ' क्यूँ 
गले का हो गया है हे अलिफ़ रे
        ग़ज़ल
दुखाता है मिरा दिल बे अलिफ़ रे
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम

