दुखा दिल भी टुकड़े जिगर होते होते
इधर भी उठा दर्द उधर होते होते
जवानी का जोबन ढला दिन की सूरत
ज़वाल आ गया दोपहर होते होते
दिल-ए-ना-मुराद इक हज़ार आरज़ूएँ
उसे चाहिए उम्र-भर होते होते
नहाने में ज़ंजीर-ए-पा तौक़-ए-गर्दन
बने हल्क़ा हल्क़ा भँवर होते होते
वो जा अपने पहलू में दे ही ये मुश्किल
जो होगा भी तो दिल में घर होते होते
हरम जाते जाते गए मय-कदे में
इधर हो गए 'शाद' उधर होते होते
ग़ज़ल
दुखा दिल भी टुकड़े जिगर होते होते
शाद लखनवी