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दुखा दिल भी टुकड़े जिगर होते होते | शाही शायरी
dukha dil bhi TukDe jigar hote hote

ग़ज़ल

दुखा दिल भी टुकड़े जिगर होते होते

शाद लखनवी

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दुखा दिल भी टुकड़े जिगर होते होते
इधर भी उठा दर्द उधर होते होते

जवानी का जोबन ढला दिन की सूरत
ज़वाल आ गया दोपहर होते होते

दिल-ए-ना-मुराद इक हज़ार आरज़ूएँ
उसे चाहिए उम्र-भर होते होते

नहाने में ज़ंजीर-ए-पा तौक़-ए-गर्दन
बने हल्क़ा हल्क़ा भँवर होते होते

वो जा अपने पहलू में दे ही ये मुश्किल
जो होगा भी तो दिल में घर होते होते

हरम जाते जाते गए मय-कदे में
इधर हो गए 'शाद' उधर होते होते