दुख नहीं है कि जल रहा हूँ मैं
रौशनी में बदल रहा हूँ मैं
टूटता है तो टूट जाने दो
आइने से निकल रहा हूँ मैं
रिज़्क़ मिलता है कितनी मुश्किल से
जैसे पत्थर में पल रहा हूँ मैं
हर ख़ज़ाने को मार दी ठोकर
और अब हाथ मल रहा हूँ मैं
ख़ौफ़ ग़र्क़ाब हो गया 'फ़ैसल'
अब समुंदर पे चल रहा हूँ मैं
ग़ज़ल
दुख नहीं है कि जल रहा हूँ मैं
फ़ैसल अजमी