EN اردو
दुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थे | शाही शायरी
dukh mein nir baha dete the sukh mein hansne lagte the

ग़ज़ल

दुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थे

निदा फ़ाज़ली

;

दुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थे
सीधे-सादे लोग थे लेकिन कितने अच्छे लगते थे

नफ़रत चढ़ती आँधी जैसी प्यार उबलते चश्मों सा
बैरी हूँ या संगी साथी सारे अपने लगते थे

बहते पानी दुख-सुख बाँटें पेड़ बड़े बूढ़ों जैसे
बच्चों की आहट सुनते ही खेत लहकने लगते थे

नदिया पर्बत चाँद निगाहें माला एक कई दाने
छोटे छोटे से आँगन भी कोसों फैले लगते थे