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दुख-दर्द के मारों से मिरा ज़िक्र न करना | शाही शायरी
dukh-dard ke maron se mera zikr na karna

ग़ज़ल

दुख-दर्द के मारों से मिरा ज़िक्र न करना

वसी शाह

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दुख-दर्द के मारों से मिरा ज़िक्र न करना
घर जाओ तो यारों से मिरा ज़िक्र न करना

वो ज़ब्त न कर पाएँगी आँखों के समुंदर
तुम राह-गुज़ारों से मिरा ज़िक्र न करना

फूलों के नशेमन में रहा हूँ मैं सदा से
देखो कभी ख़ारों से मिरा ज़िक्र न करना

शायद ये अँधेरे ही मुझे राह दिखाएँ
अब चाँद सितारों से मिरा ज़िक्र न करना

वो मेरी कहानी को ग़लत रंग न दे दें
अफ़्साना-निगारों से मिरा ज़िक्र न करना

शायद वो मिरे हाल पे बे-साख़्ता रो दें
इस बार बहारों से मिरा ज़िक्र न करना

ले जाएँगे गहराई में तुम को भी बहा कर
दरिया के किनारों से मिरा ज़िक्र न करना

वो शख़्स मिले तो उसे हर बात बताना
तुम सिर्फ़ इशारों से मिरा ज़िक्र न करना