डुबोने वालों को शर्मिंदा कर चुका हूँगा
मैं डूब कर ही सही पार उतर चुका हूँगा
पहुँच तो जाऊँगा आब-ए-हयात तक लेकिन
ज़बाँ भिगोने से पहले ही मर चुका हूँगा
सुनाई जाएगी जब तक मुझे सज़ा-ए-सुख़न
सुकूत-ए-वक़्त में आवाज़ भर चुका हूँगा
मिसाल-ए-रेग हूँ में साअ'तों की मुट्ठी में
वो जब तक आएगा सारा बिखर चुका हूँगा
ज़माना आएगा उस वक़्त ख़ैर-मक़्दम को
जब इस जहाँ से 'मुज़फ़्फ़र' गुज़र चुका हूँगा
ग़ज़ल
डुबोने वालों को शर्मिंदा कर चुका हूँगा
मुज़फ़्फ़र वारसी