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डुबोने वालों को शर्मिंदा कर चुका हूँगा | शाही शायरी
Dubone walon ko sharminda kar chuka hunga

ग़ज़ल

डुबोने वालों को शर्मिंदा कर चुका हूँगा

मुज़फ़्फ़र वारसी

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डुबोने वालों को शर्मिंदा कर चुका हूँगा
मैं डूब कर ही सही पार उतर चुका हूँगा

पहुँच तो जाऊँगा आब-ए-हयात तक लेकिन
ज़बाँ भिगोने से पहले ही मर चुका हूँगा

सुनाई जाएगी जब तक मुझे सज़ा-ए-सुख़न
सुकूत-ए-वक़्त में आवाज़ भर चुका हूँगा

मिसाल-ए-रेग हूँ में साअ'तों की मुट्ठी में
वो जब तक आएगा सारा बिखर चुका हूँगा

ज़माना आएगा उस वक़्त ख़ैर-मक़्दम को
जब इस जहाँ से 'मुज़फ़्फ़र' गुज़र चुका हूँगा