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दोबारा दिल में कोई इंक़िलाब हो न सका | शाही शायरी
dubara dil mein koi inqalab ho na saka

ग़ज़ल

दोबारा दिल में कोई इंक़िलाब हो न सका

नातिक़ लखनवी

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दोबारा दिल में कोई इंक़िलाब हो न सका
तुम्हारी पहली नज़र को जवाब हो न सका

कमाल-ए-नूर ज़वाल-ए-हिजाब हो न सका
वो बे-नक़ाब कभी बे-नक़ाब हो न सका

दिल-ए-तपीदा हुआ बज़्म-ए-हुस्न से वापस
नज़र ठहर न सकी इंतिख़ाब हो न सका

रविश बदल गई तेवर तेरे नहीं बदले
क़यामत आई मगर इंक़िलाब हो न सका

कहाँ दिल और कहाँ दिल के आईने की अदा
ग़रज सवाल से बेहतर जवाब हो न सका

मेरे सवाल पे उस ने नज़र जो की नीची
फिर उस का मुझ से जवाब-उल-जवाब हो न सका

जलाल-ए-रोब है 'नातिक़' जमाल पर उस के
वो बे-नक़ाब कभी बे-नक़ाब हो न सका