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दुआओं की ज़रूरत है दवा में कुछ नहीं रक्खा | शाही शायरी
duaon ki zarurat hai dawa mein kuchh nahin rakkha

ग़ज़ल

दुआओं की ज़रूरत है दवा में कुछ नहीं रक्खा

खालिद इरफ़ान

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दुआओं की ज़रूरत है दवा में कुछ नहीं रक्खा
चची में जान बाक़ी है चचा में कुछ नहीं रक्खा

गरेबाँ के बटन सर का दुपट्टा आँख का पर्दा
तुम्हारी आर्टिफ़िशियल हया में कुछ नहीं रक्खा

रबर के दस्तख़त पत्थर के अफ़सर मोम के काग़ज़
जब अंदर से टटोला नादिरा में कुछ नहीं रक्खा

जो तुम परफ़्यूम में डुबकी लगा कर रोज़ आती हो
फ़ज़ा तुम से मोअत्तर है हवा में कुछ नहीं रक्खा

मोहल्ले में उन्हें कहते हैं सब शर्रुन्निसा-बेगम
तो ये साबित हुआ ख़ैरुन्निसा में कुछ नहीं रक्खा

मिसेज़ इक़बाल पानी माँग के पीती हैं शौहर से
फिर इस के ब'अद कहती हैं पिया में कुछ नहीं रक्खा

मोहब्बत से जो ख़ाली हो वो दिल बे-कार होता है
ख़ला में जाइए बैत-उल-ख़ला में कुछ नहीं रक्खा

वो मेक-अप के सहारे बन गई फिल्मों की हीरोइन
न हो नाज़-ओ-अदा तो नाज़िया में कुछ नहीं रक्खा

हमारी नस्ल के ख़ाली कनस्तर ये बताते हैं
तलो में कुछ नहीं है डालडा में कुछ नहीं रक्खा

तो ये नोटों की ख़ुश्बू कौन सी पॉकेट से आई है
मैं कैसे मान लूँ बंद-ए-क़बा में कुछ नहीं रक्खा