दुआ से कुछ न हुआ इल्तिजा से कुछ न हुआ
बुतों के इश्क़ में याद-ए-ख़ुदा से कुछ न हवा
मैं एक क्या हूँ सभी बा-वफ़ा हैं शाकी-ए-जौर
तुम एक क्या हो किसी बेवफ़ा से कुछ न हुआ
भरी तो थी मगर अपने असर को ला न सकी
गई तो थी मगर आह-ए-रसा से कुछ न हुआ
वो आरज़ू हूँ कि जिस आरज़ू की कुछ न चली
वो मुद्दआ' हूँ कि जिस मुद्दआ' से कुछ न हुआ
यही सही कि ख़ुशी से मिले मिले तो सही
यही सही कि हमारी दुआ से कुछ न हुआ
वो एक हम कि जो चाहा किया विसाल की रात
वो एक तुम कि तुम्हारी हया से कुछ न हुआ
उन्हें बुला के तसव्वुर में हम मिले 'मुज़्तर'
हवस तो हो गई पूरी बला से कुछ न हुआ
ग़ज़ल
दुआ से कुछ न हुआ इल्तिजा से कुछ न हुआ
मुज़्तर ख़ैराबादी