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दुआ ही वज्ह-ए-करामात थोड़ी होती है | शाही शायरी
dua hi wajh-e-karamat thoDi hoti hai

ग़ज़ल

दुआ ही वज्ह-ए-करामात थोड़ी होती है

हिजाब अब्बासी

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दुआ ही वज्ह-ए-करामात थोड़ी होती है
ग़ज़ब की धूप में बरसात थोड़ी होती है

रह-ए-वफ़ा की रिवायत है सर झुका रखना
बिसात-ए-इश्क़ पे ये मात थोड़ी होती है

जो अपना नाम सफ़-ए-मो'तबर में लिखते हैं
ख़ुद उन से अपनी मुलाक़ात थोड़ी होती है

बहुत से राज़ दिलों के दिलों में रहते हैं
उसे बताने की हर बात थोड़ी होती है

दिल ओ नज़र में जो बस जाए दिल-रुबा ठहरे
कि दिलरुबाई कोई ज़ात थोड़ी होती है

'हिजाब' अहल-ए-जुनूँ में शुमार होने की
असास इज़्ज़त-ए-सादात थोड़ी होती है