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दुआ हमारी कभी बा-असर नहीं होती | शाही शायरी
dua hamari kabhi ba-asar nahin hoti

ग़ज़ल

दुआ हमारी कभी बा-असर नहीं होती

दानिश फ़राही

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दुआ हमारी कभी बा-असर नहीं होती
तुम्हारी हम पे करम की नज़र नहीं होती

मैं क्या बताऊँ तिरे ग़म में क्या गुज़रती है
वो कौन लम्हा है जब आँख तर नहीं होती

इलाज-ए-दर्द-ए-मोहब्बत जो हो तो क्यूँ कर हो
इलाही कोई दवा कारगर नहीं होती

तिरे ख़याल में रहता हूँ मैं जो गुम ऐ दोस्त
मुझे ज़माने की कुछ भी ख़बर नहीं होती

उजाला कैसे नज़र आएगा कहीं तुम को
शब-ए-फ़िराक़ की 'दानिश' सहर नहीं होती