EN اردو
दोस्तो के काम आना जुर्म है | शाही शायरी
dosto ke kaam aana jurm hai

ग़ज़ल

दोस्तो के काम आना जुर्म है

साजिद असर

;

दोस्तो के काम आना जुर्म है
ख़ुद को दरिया-दिल बनाना जुर्म है

अश्क-रेज़ी की इजाज़त है मगर
एहतिजाजन मुस्कुराना जुर्म है

मुन्हरिफ़ तारीकियों के साज़ पर
कोई रौशन गीत गाना जुर्म है

जब नुमाइश की चमक हो ना-गुज़ीर
अपनी रौनक़ भूल जाना जुर्म है

सर झुकाना अच्छी आदत है मगर
तंग आ कर सर उठाना जुर्म है

पत्थरों के बाग़ में साजिद-'असर'
काँच के पौदे लगाना जुर्म है