EN اردو
दोस्तो दिल कहीं ज़िन्हार न आने पाए | शाही शायरी
dosto dil kahin zinhaar na aane pae

ग़ज़ल

दोस्तो दिल कहीं ज़िन्हार न आने पाए

इमदाद अली बहर

;

दोस्तो दिल कहीं ज़िन्हार न आने पाए
दिल के हाथों कोई आज़ार न आने पाए

कीजिए हुस्न-परस्ती मगर इस क़ैद के साथ
प्यारी सूरत पे ज़रा प्यार न आने पाए

ख़ाना-ए-यार घर आफ़त का है ऐ रहगीरो
जिस्म पर साया-ए-दीवार न आने पाए

ऐ जुनूँ तेरा ज़माने में रहे जब तक दौर
होश में आशिक़-ए-सरशार न आने पाए

आप पर उ'क़्दा-ए-नाज़ुक-कमरी खुल जाता
ता-कमर गेसू-ए-ख़मदार न आने पाए

चश्म-ए-महबूब से नर्गिस को बराबर न करो
पास बीमार के बीमार न आने पाए

'बहर' कुछ ग़म न करो दिल के जुदा होने का
अब बग़ल में ये बद-अतवार न आने पाए