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दोस्तो अब तुम न देखोगे ये दिन | शाही शायरी
dosto ab tum na dekhoge ye din

ग़ज़ल

दोस्तो अब तुम न देखोगे ये दिन

कैफ़ भोपाली

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दोस्तो अब तुम न देखोगे ये दिन
ख़त्म हैं हम पर सितम-आराईयाँ

चुन लिया इक एक काँटा राह का
हो मुबारक ये बरहना-पाईयाँ

कू-ब-कू मेरे जुनूँ की अज़्मतें
उस की महफ़िल में मिरी रुस्वाइयाँ

अज़्मत-ए-सुक़रात-ओ-ईसा की क़सम
दार के साए में हैं दाराइयाँ

चारागर मरहम भरेगा तू कहाँ
रूह तक हैं ज़ख़्म की गहराइयाँ

'कैफ़' को दाग़-ए-जिगर बख़्शे गए
अल्लाह अल्लाह ये करम-फ़रमाइयाँ