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दोस्ती उस की दुश्मनी ही सही | शाही शायरी
dosti uski dushmani hi sahi

ग़ज़ल

दोस्ती उस की दुश्मनी ही सही

ग़ुलाम मौला क़लक़

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दोस्ती उस की दुश्मनी ही सही
दोस्त तो हो वो मुद्दई ही सही

मस्ती-ओ-बहस-ए-उज़्र-ए-कफ़्फ़ारा
तौबा से तौबा हम ने की ही सही

है अगर कुछ वफ़ा तो क्या कहने
कुछ नहीं है तो दिल लगी ही सही

जी है ये बिन लगे नहीं रहता
कुछ तो हो शग़्ल-ए-आशिक़ी ही सही

मोहतसिब ख़त्म कीजिए हुज्जत
पी है तो ख़ैर हम ने पी ही सही

हैफ़ ख़मयाज़-हा-ए-हसरत-ओ-शौक़
ज़िंदगानी कशाकशी ही सही

जान दे कर लिया है नाम-ए-वफ़ा
मौत भी हम ने मोल ली ही सही

मिलते हैं मुद्दई से मिलने दो
कि मिरी ना-ख़ुशी ख़ुशी ही सही

बोसा देने की चीज़ है आख़िर
न सही हर घड़ी कभी ही सही

क़त्ल होते हैं क़त्ल होते हैं
अहद-ए-दिल दौर-ए-नादरी ही सही

ऐ 'क़लक़' नासेहों से क्या तकरार
मान इक बात मान ली ही सही