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दोस्ती में तिरी बस हम ने बहुत दुख झेले | शाही शायरी
dosti mein teri bas humne bahut dukh jhele

ग़ज़ल

दोस्ती में तिरी बस हम ने बहुत दुख झेले

मिर्ज़ा अज़फ़री

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दोस्ती में तिरी बस हम ने बहुत दुख झेले
कौन नित उठ के मिरी जान ये पापड़ बेले

चोली मस्की है खुले बंद गरेबाँ ये फटा
कौन सी जाए से बन आए मियाँ अलबेले

मेल तेरे का कोई हम को सजीला न मिला
देख डाले हैं हर इक शहर के मेले-ठेले

ज़ुल्म की रहती है मुझ पर जो ये ले ले दे दे
काएनात अपनी मिरे पास है जो कुछ ले ले

नोश फ़रमाते हो बातों में मज़े से अक्सर
धेंदस और कदूही और खीरे चचींदे केले

दिल भरा है तो कहो और नहीं तो बिस्मिल्लाह
और मन मानती दस लाख तो गाली दे ले

तेरे धमकाने से कोई 'अज़फ़री' धमके हैगा
खेल ऐसे हैं मियाँ हम ने बहुत से खेले