दोस्त अपने हैं लोग अपने हैं
झूट पर जिन के होंट कपने हैं
ख़ुश रहेंगे वो दोस्त तुम से भी
सामने उन के नाम जपने हैं
ये अधिकार आप कब देंगे
कुछ हमारे भी यार सपने हैं
लिख रहे हो जो झूट काग़ज़ पर
क्या रिसालों में लेख छपने हैं
और कुछ ख़ाक छाननी होगी
पिंडुलियों में सफ़र सड़पने हैं
तुम को हैरत नहीं है हैरत है
इस ज़माने में लोग अपने हैं
सोच कुंदन बनेगी फिर 'साजिद'
ज़ेहन में कुछ विचार तपने हैं

ग़ज़ल
दोस्त अपने हैं लोग अपने हैं
साजिद प्रेमी