EN اردو
दो बादल आपस में मिले थे फिर ऐसी बरसात हुई | शाही शायरी
do baadal aapas mein mile the phir aisi barsat hui

ग़ज़ल

दो बादल आपस में मिले थे फिर ऐसी बरसात हुई

रज़ी अख़्तर शौक़

;

दो बादल आपस में मिले थे फिर ऐसी बरसात हुई
जिस्म ने जिस्म से सरगोशी की रूह की रूह से बात हुई

दो दिल थे और एक सा मौसम जिस की सख़ावत ऐसी थी
मैं भी इक बरखा में नहाया वो भी अब्र-सिफ़ात हुई

उस के हाथ में हाथ लिए और धूप छाँव में चलता हुआ
यूँ लगता था सारी दुनिया जैसे मेरे साथ हुई

सारी उम्र सुराग़ न मिलता अपने होने न होने का
ये इक लहर लहू की जानाँ दोनों का इसबात हुई

इस मौसम ने जाते जाते इक दो पल की बारिश की
फिर वही हल्क़ा पाँव में आया फिर वही गर्दिश साथ हुई