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दिए से यूँ दिया जलता रहेगा | शाही शायरी
diye se yun diya jalta rahega

ग़ज़ल

दिए से यूँ दिया जलता रहेगा

गुलज़ार बुख़ारी

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दिए से यूँ दिया जलता रहेगा
उजाला फूलता-फलता रहेगा

नहीं है बाँझ आवाज़ों की धरती
सदाओं का नसब चलता रहेगा

सकूँ हो बहर में या हो तलातुम
गुहर तो सीप में पलता रहेगा

ज़मीं पर बारिशें होती रहेंगी
समुंदर अब्र में ढलता रहेगा

न बाज़ आएगा ग़फ़लत से भी इंसाँ
कफ़-ए-अफ़सोस भी मलता रहेगा

छुपाओगे अगर 'गुलज़ार' ख़ुद को
वजूद अपना तुम्हें खुलता रहेगा