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दिया नसीब में नहीं सितारा बख़्त में नहीं | शाही शायरी
diya nasib mein nahin sitara baKHt mein nahin

ग़ज़ल

दिया नसीब में नहीं सितारा बख़्त में नहीं

अहमद शहरयार

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दिया नसीब में नहीं सितारा बख़्त में नहीं
तो क्या शरार भी वजूद-ए-संग-ए-सख़्त में नहीं

मिरी बक़ा का राज़ है मुसाफ़िरत मुसाफ़िरत
सो नक़्श-ए-पा बग़ैर मेरे साज़-ओ-रख़्त में नहीं

मुझे है शहर के घरों से सिर्फ़ इस क़दर गिला
कि भाई हुस्न आसमान-ए-लख़्त-लख़्त में नहीं

मिरा कमाल मुनहसिर है मेरे इख़्तिसार पर
मिरी नुमू का शाइबा किसी दरख़्त में नहीं

फ़क़ीर-ए-शहर भी रहा हूँ 'शहरयार' भी मगर
जो इत्मिनान फ़क़्र में है ताज-ओ-तख़्त में नहीं