दिया नसीब में नहीं सितारा बख़्त में नहीं
तो क्या शरार भी वजूद-ए-संग-ए-सख़्त में नहीं
मिरी बक़ा का राज़ है मुसाफ़िरत मुसाफ़िरत
सो नक़्श-ए-पा बग़ैर मेरे साज़-ओ-रख़्त में नहीं
मुझे है शहर के घरों से सिर्फ़ इस क़दर गिला
कि भाई हुस्न आसमान-ए-लख़्त-लख़्त में नहीं
मिरा कमाल मुनहसिर है मेरे इख़्तिसार पर
मिरी नुमू का शाइबा किसी दरख़्त में नहीं
फ़क़ीर-ए-शहर भी रहा हूँ 'शहरयार' भी मगर
जो इत्मिनान फ़क़्र में है ताज-ओ-तख़्त में नहीं
ग़ज़ल
दिया नसीब में नहीं सितारा बख़्त में नहीं
अहमद शहरयार