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दिन मुँह खोले गाती धूप | शाही शायरी
din munh khole gati dhup

ग़ज़ल

दिन मुँह खोले गाती धूप

प्रेम भण्डारी

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दिन मुँह खोले गाती धूप
रात से क्यूँ शरमाती धूप

खेल-कूद कर शाम ढले क्यूँ
अपने घर को जाती धूप

चलते रहना ही जीवन है
हम को ये समझाती धूप

दिन जैसे साथी के दुख में
रो रो कर मर जाती धूप

कभी कभी अच्छी लगती है
हल्की सी बरसाती धूप