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दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ | शाही शायरी
din le ke jaun sath use sham kar ke aaun

ग़ज़ल

दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ

अंजुम सलीमी

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दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ
बे-कार के सफ़र में कोई काम कर के आऊँ

बे-मोल कर गईं मुझे घर की ज़रूरतें
अब अपने-आप को कहाँ नीलाम कर के आऊँ

मैं अपने शोर-ओ-शर से किसी रोज़ भाग कर
इक और जिस्म में कहीं आराम कर के आऊँ

कुछ रोज़ मेरे नाम का हिस्सा रहा है वो
अच्छा नहीं कि अब उसे बद-नाम कर के आऊँ

'अंजुम' मैं बद-दुआ भी नहीं दे सका उसे
जी चाहता तो था वहाँ कोहराम कर के आऊँ