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दिन को हाँ कह दिया तो रात नहीं | शाही शायरी
din ko han kah diya to raat nahin

ग़ज़ल

दिन को हाँ कह दिया तो रात नहीं

रौनक़ टोंकवी

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दिन को हाँ कह दिया तो रात नहीं
आप की बात को सबात नहीं

हिज्र में दिन तो कट ही जाता है
नहीं कटती तो एक रात नहीं

क्यूँ न अख़्लाक़ से बरी हो कलाम
शेर लिखते हैं कुछ लुग़ात नहीं

क्यूँ हिरासाँ हूँ मैं दम-ए-मुश्किल
क्या वो हल्लाल-ए-मुश्किलात नहीं

एक बोसा की अर्ज़ पर 'रौनक़'
कह गया यार पाँच सात नहीं