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दिन का समय है, चौक कुएँ का और बाँकों के जाल | शाही शायरी
din ka samay hai, chauk kuen ka aur bankon ke jal

ग़ज़ल

दिन का समय है, चौक कुएँ का और बाँकों के जाल

अली अकबर नातिक़

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दिन का समय है, चौक कुएँ का और बाँकों के जाल
ऐसे में नारी तू ने चली फिर तीतरी वाली चाल

जामुनों वाले देस के लड़के, टेढ़े उन के तौर
पँख टटोलें तूतियों के वो, फिर कर हर हर डाल

वो शख़्स अमर है, जो पीवेगा दो चाँदों के नूर
उस की आँखें सदा गुलाबी जो देखे इक लाल

शाम की ठंडी रुत ने भरे हैं आब-ए-हयात से नैन
मोंगरों वाले बाग़ ने ओढ़ी गहरी कासनी शाल