दिन ही मिलिएगा या शब आइएगा
बंदा-ख़ाना में फिर कब आइएगा
लग चली ही सी है अभी तो ख़याल
ढब चढ़ेगा तो कुछ ढबाइएगा
एक बोसे पे दीन ओ दिल तो लिया
और कितना मुझे दबाइएगा
जा चुके हम जब आप से प्यारे
क्यूँ न इस राह से अब आइएगा
हम भी मुल्ला से कुछ करेंगे शुरूअ'
आप किस वक़्त मकतब आइएगा
कर ले करनी जो है ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त
फेर इस पैंठ में कब आइएगा
अब तो 'क़ाएम' है कूच ही की सलाह
यूँ घर अपना है फिर जब आइएगा
ग़ज़ल
दिन ही मिलिएगा या शब आइएगा
क़ाएम चाँदपुरी