दिन गुज़र जाएँगे सरकार कोई बात नहीं
ज़ख़्म भर जाएँगे सरकार कोई बात नहीं
आप का शहर अगर बार समझता है हमें
कूच कर जाएँगे सरकार कोई बात नहीं
आप के जौर का जब ज़िक्र छिड़ा महशर में
हम मुकर जाएँगे सरकार कोई बात नहीं
रो के जीने में भला कौन सी शीरीनी है
हंस के मर जाएँगे सरकार कोई बात नहीं
निकल आए हैं 'अदम' से तो झिझकना कैसा
दर-ब-दर जाएँगे सरकार कोई बात नहीं
ग़ज़ल
दिन गुज़र जाएँगे सरकार कोई बात नहीं
अब्दुल हमीद अदम