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दिन ढला शब हुई चराग़ जले | शाही शायरी
din Dhala shab hui charagh jale

ग़ज़ल

दिन ढला शब हुई चराग़ जले

अख़्तर ज़ियाई

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दिन ढला शब हुई चराग़ जले
बज़्म-ए-रिंदाँ में फिर अयाग़ जले

दफ़अ'तन आँधियों ने रुख़ बदला
ना-गहाँ आरज़ू के बाग़ जले

आस डूबी तो दिल हुआ रौशन
बुझ गया दिल तो दिल के दाग़ जले

जल-बुझे जुस्तुजू के परवाने
मुस्तक़िल मंज़िल-ए-सुराग़ जले

गाह मसरूफ़ियत सुलग उट्ठे
गाह तन्हाई ओ फ़राग़ जले

आँखें करती हैं शबनम-अफ़्शानी
जब तिरी याद में दिमाग़ जले

उन का चेहरा तह-ए-नक़ाब 'अख़्तर'
जैसे पर्दे में इक चराग़ जले